पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४०४

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प्रिया-प्रकाश (अठारह वर्ण का) मूल--यतन जमायो नेह तरु, फूलत नंद कुमार । खंडत कसकत जी न अब कपट कठोर कुठार ।। २३ ।। भावार्थ-हे नन्दकुमार, यत्न से जमाये हुए प्रेमरूपी वृक्ष को, अब फूलने समय कपट के कोर कुल्हाड़े से काटते हुए तुम्हारे जी को कष्ट नहीं होता? (नोट)-१ अ, कवर्ग के २ क, ख, चवर्ग का १ज, स्वर्ग के ३१, ठ, ड, तवर्ग के २त, न, पवर्ग के ४ प, फ, ब, म और य, र, ल, स, ह मिलकर १८ वर्ण है। ( सत्तरह बर्ण का) मूल-बालापन गोरस हरे बड़े भथे जिमि चित ! तिमि केसौ हरि देह हू जो न मिलौ तुम मित्त ॥ २४ ॥ भावार्थ- हे मित्र यदि तुम मिलना नहीं चाहते तो न सही, (कुछ परवाह नहीं ) परंतु एक बात करो कि जैसे लड़कपन में गोरस चोराया, कुछ बड़े होने पर गोपियों के चित्त हरण किये, वैसे ही शाब मेरे शरीर को भी हरण कर लो। (नोट)-कवर्ग के २ वर्ण क, भ, वर्ग के २ च, ज, टवर्ग का १ड, वर्ग के ३ त, द, न, पवर्ग के ४प, ब, भ, म, और य, र, ल, स, ह मिलकर १७ वर्ण हैं। ( सोरह वर्ण का) मूल-तुम घर घर मँडरात अति बलिभुक से नंदलाल । जाफ्री मति तुमही लगी कहा करै सो बाल ॥ २५ ॥ भावार्थ----हे मंदलाल तुम तो कौवे की तरह घर घर मैडरासे फिरते हो, पर खिसका मन तुम्ही ले लगा है, वह नी क्या करे।