पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४००

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प्रिया-प्रकाश मूल- अक्षर षट विंशति सबै भाषा बरनि बनाय । एक एक घटि एक लगि केशवदास सुनाव ॥ १४ ॥ (यथा) (छब्बीस वर्ग का दोहा) भूल-चोरी माखन दूध धी हूँढ़त हठि गोपाल ! डरत न जल थल भटाकि फिीर झगरत छवि सों लाल ॥१५॥ भावार्थ-(कोई गोपी कृष्ण से कहती है ) हे गोपाल जी तुम चोरी से माखन दूध और घी खोजने में जल थल सर्वत्र फिरते डरते नही और फिर ऊपर से बड़ी छवि से {बड़ी शान से) झगड़ते भी हो। ( बोट )-इस दोहे में कवर्ग के ४ वर्ण क, ख, ग, घ, चवर्गक ४ वर्ष च, छ, ज, झ, वर्ग के चार वर्ण , ठ, ड, ढ, तवर्ग के ५ वर्ण त, थ, द, ध, न, पवर्ग के ५ वर्ण प, फ, ब, भ, म, और र, ल, स तथा ह सब मिलकर वर्णमाला के २६ अक्षरों का प्रयोग किया गया है। एक अक्षर दो बार तीन बार पावै उसी गणना एकही समझो। (पञ्चीस वर्ण का दोहा) 'मूल-चेटी चंदन हाथ के रीझि चढ़ायो गात । बिहवल चितिधर डिंभ शिशु फूले बपुष न मात ॥ १६ ॥ शब्दार्था-बेटी - दासी ( बरी) हाथ के हाथ से । गात = शरीर । विश्व अति ब्याकुल । छिसिधर = राजा कस । डिभ शिशु = कपट से बाल रूप धारी (कृष्ण भगवान ) । न मातन ससाल।