पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३७६

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पंद्रहवां प्रभाव ३६-( यमक अलंकार) मूल पद एकै नाना अरथ जिनमें जेतो बित्तु । तामें ताको काढ़िये यमक माहिं दै चिन्तु ॥ १॥ भावार्था--पद एक से हो, पर अर्थ विभिन्न हो। जिसका जितना ज्ञानबल हो वह उतने अर्थ निकाले । यही यमक है। मूल-आदि पदादिक यमक सब लिख ललित चितलाय । सुनहु सुबुद्धि उदाहरण केशव कहत बनाय ॥ २ ॥ भावार्थ-श्रादिपद, द्वितीयपद, तृतीयपद इत्यादि अनेक प्रकार के यमक हैं, उनके उदाहरण देखिये। (श्रादिपद यमक) मूल-सजनी सज नीरद निराखि हरषि नचत इत मोर । पीय पीय चातक रटत चितवहि हरि की ओर ॥३॥ भावार्थ-हे सजनी ! बादलों की सज देखकर हर्षित होकर यहां भोर नच रहे हैं ( अपने प्रियतम का पाकर हर्षित होने का समय है ) और चातक भी पीय पीय (प्रियतम पर प्यार करने का समय है ) रटता है, अतः तू भी (भान छोड़कर ) करण की ओर देख। सजनी पहले चरण में श्रादिपद कियौं केशोदास रामचन्द्र पूणों में भी नामानुसार