पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३७४

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३७० प्रिया-प्रकाश ( मोट)-भावार्थ सुगम है । तात्पर्य यह है कि शिव विष्णु समान हैं, और विष्णु शिव समान हैं । इसे अब लोग 'उपमे वोपमा अलंकार कहते हैं। (विशेष)-यहाँ तक २१ प्रकार की गिनाई हुई उपमायें कहीं गई। अधागे केशव एक संकीर्णोपमा और भी बतलाते हैं जिसे भूषण ललितापमा' कहा है। २-(संकीर्णोपमा) मूल-बंधु, चोर, बादी, सुहृद, कल्प, प्रच्छ, प्रभु जानि । अंगी, रिपु, खोदर सहित, इनके अर्थ बखानि ॥४७॥ भारार्थ-संकीर्णोपमा के बाचक शब्द ये हैं। इनके पर्याय भी हो सकते हैं। बधु, चोर, वादी, सुहृद (मित्र), कल्प (शरीर), So (विवाडी ) प्रभु (नाथ, मालिक, साहेब), अंगी, रिपु (शा), लोदर ( भाई ) इत्यादि। मूल-विधु को सो बंधु, किधौं चोर हास्यरसको कि कुंदन को चादी, किधौं मोतिन को मीत है। कल्प कलहंस को, कि छीरनिधि छवि प्रच्छ, हिम-गिरि-प्रभा-प्रभु, प्रगट पुनीत है। अमल अमित अंगी गंगा के सरंगन को, सोदर सुधा को, रिपु रूपे को अभीत है । देस देस दिस दिस परम प्रकाशमान, किषों केशोदास रामचन्द्र जू को गीत है ।। १८ ॥