पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३६१

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प्रिया-प्रकाश (नोट)-शब्दार्थ और भावार्थ के लिये देखो हमारी 'केशव कौतुदी' प्रकाश ९ छंद ४१ । (ब्याख्या)--मुख के दो उपमान हैं, एक चंद्रमा, दूसरा कमल। कहनेवाले को कमल अधिक पसंद है। श्रतःचंद्रमा के दोष दर्शाकर उसका निरादर करके केवल कमल ही उपनाम निर्धारित किया गया । ऐसा ही कथन नियमोपमा है। १०-(गुणाधिकोपमा) मूल अधिकन हू ते अधिक गुण, जहां बरनियत कोय । तासों गुण अधिकोषमा, कहत सयाने लोय ॥२३॥ भावार्थ-बड़ा से बड़ा वा अच्छे से अच्छा उपमान लें और फिर उपमेय को उससे भी अधिक अच्छा वर्णन करें। (यथा) मूलचे तुरंग सेत रंग संग एक, ये अनेक, हैं सुरंग अंग अंग पै कुरंगमीत से। ये निशंक यज्ञ अंक, वे सशक केशोदास, ये कलंक रंक, वे कलंक ही कलीत से। वे पिये सुधाहि, ये सुधानिधीश के रसै जु सांचहू पुनीत ये, सुनीत वे पुनीत से। देहि ये दिये विना, बिना दिये न देहिं वे, भये न, हैं न, होहिंगे न, इंद्र इंद्रजीत से ॥२४॥ (नोट)-पहले तो राजा इंद्रजीत के लिये बड़ा से बड़ा उप- 'मान (इंद्र) लिया, फिर उससे भी बढ़कर उसका वैभव