पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५८

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चौदहवाँ प्रभाव खजाना । कलुष कृपानी = पापनाशक (गंगा जल पाप नाशक) है ही, बाणी इस कारण पाप नाशक है कि प्रवीणराय केवल राम भजन के पद गाती है)। भावार्थ-हे मेरी रानी प्रवीणराया। तेरी बाणी गंगा अल सम है, क्योंकि वह रंग में सफेद है, बाणी मधुर वर्गों से युक्त है। गंगा जल सब सुरों (देवताओं) को भाता है, तेरी बाणी सातौ श्रेष्ट सुरों ( सारी०१० म०प० ध० नि०) से युक्त है। वह शिव से संबंध रखता है, बानी भैरवराग से शुक्त है। बह मुक्ति दाता है, बाणी की गति ( प्रवाह) सुन्दर है- (गंगाजल नीचे को बहता है, यहां यह दोष छिपा कर केवल गुण ही कहा गया ) । गंगा जल खूब विस्तृत भूमि पर बहता है, वाणी विशेष तानों से युक्त है। गंगा जल पविभ है, बापी भी व्याकरणानुसार शुद्ध हैं। गंगा जल के किनारे बहुत से ब्राह्मण देखे जाते हैं, बाणी बोलते दशमय तेरे दाल देखे जाते हैं। वह चमकता है, बाणी बोलते समय दात चमकते हैं। वह वैदिक विधानों ( सत्या स्मान दानादि । को सुखद है, बाणी कानों को सुखद है। वह शोभा युक्त है, बाणी भी मांगलिक है (वेश्याओं का मान मांगलिक माना जाता है। वह परमार्थ साधन का कारण है, बाणी भी परम सुन्दर गंभीर अर्थ मय है। यह बड़े पापों के लिये तलवार (नासक है) तो तेरी वाणी मी (राम भजन जये होने ले ) सोही कलुष नाशिनी ही मानी जाती है। वह जगत्, नेरी बाणी भी प्रसिद्ध है। जल पूर्व पुण्यों से मिलता है, मेरा उद्यान (ari ) भी पर्व पुष्यों सं सुनने को मिलता है, अतः तेरी वाणी माजल सम है।