पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३४९

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चौदहवां प्रभाव ३५---( उपमालंकार) भूल-रूप शील गुण होय सम, जो क्योंहूं अनुसार । तासों उपमा कहत कवि, केशव बहुत प्रकार ॥ १॥ भावार्थ-जब किसी वस्तु के रूप ( रंग आकारादि ) शील ( स्वभाव ) और गुण ( सुखद दुखद होने) की समता किसी अन्य वस्तु के रूप, शील और गुण से की जाती है, तब वदा उपमा अलंकार कहा जाता है। उपमा के अनेक प्रकार हैं, जो नीचे मनाये जाते हैं:- मूल-संशय, हेतु अभूत अरु, अदभुत, विक्रिय जानि । दृषण, भूषण, मोह मय, नियम, गुणाधिक आनि ॥२॥ अतिशय, उत्यक्षित कहौं, श्लेष, धर्म, बिपरीति । निर्णय, लाक्षणिकोपमा, असेभाविता मीत ॥ ३ ॥ पुनि विरोध, मालोपमा, और परस्पर रीस । उपमा भेद अनेक हैं मैं बरणी इक बीस ॥ ४ ॥ (नोट)-ऊपर गनाये हुए २१ भेदों के अलावा केशव ने अंत में एक संकीर्णोपमा भी कही है। इस प्रकार २२ प्रकार उपमा के केशव ने बतलाये हैं।