पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३४८

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तेरहवाँ प्रभाव ३४३ (पुनः) मूल- जीव दियो, जिन जन्म दियो जग, जाहि की ज्योति बड़ी जग जाने । ताही सों बैर मनो बच काय करै कृत केशव ना उर आनै ॥ मूषक ते ऋषि सिंह कयौ ऋषि ही सउँ मूरख रोष बिताने । ऐसो कछू यह काल है जाको भलो करिये सो बुरो करि मानै ॥४२॥ शब्दार्थ-कृत किया हुआ एहसान ! ( मूषक और ऋषि की कथा ) एक ऋषि की कुटी में एक चूहा रहा करता था। वह बिल्ली के डर से सदा भयभीत रहता। निवेदन करने पर ऋषि ने उसे बिल्ली बना दिया तब कुत्तो से भयभीत रहता। ऋषि ने उसे कुत्ता कर दिया। तब वह सिंह से डरता रहता। ऋषि ने कृपा करके उसे सिंह बना दिया। सिंह बनने पर वह मूर्ख ऋषि ही को खाने दौड़ा। तब ऋषि ने उसे फिर मूसा बना दिया। सउँ = सम्मुख । रोष बिताने क्रोध विस्तार करता है। भावार्थ-सुगम है। (तेरही प्रभाव समाप्त)