पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३४१

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प्रिया-प्रकाश लता तो हिमालय से पाता है क्योंकि वहां तक जाता है, सुगंध अनेक पुष्पों से पाता है, और मकरंद के बोझ के कारण मंद गति हो जाता है, पर मान तरु तोड़ने की शक्ति कहां से पाता है। (नोट)-इन्तु, गुण, औ क्रियाओं का मौजूं वर्णन बड़ी खूबी और शुक्ति से किया गया है, इसी से मणिदीपक है। यही मौजूनियत अव के कवियों में नहीं है, इसी से उनकी कविता चमकती नहीं । उर्दू वालों में यह मौजूनियत पाई जाती है। २-(मालादीपक) मूल-सबै मिलै जहँ वरनिये, देश काल बुधिर्वत । माला दीपक कहत हैं ताके भेद अनंत ॥ भावार्थ-जहां अनेक दातों का इस प्रकार वर्णन करें कि एक का दूसरी से जोड़ सा खगता जाय ( जैसे जंजीर को करियां अलग होती हैं पर परस्पर मिली रहती हैं) और देश काल के अनुसार बात बुद्धिमानी से भोज की गई हो। (यथा) भूल-दीपक देह दशा सो मिलै सुदशा मिलि तेजाहि जोति जगावै । जागिकै जोति सबै समुझै तम शोधि सु तौ शुभता दरसाबै 11 सो शुभता रचै रूप को रूपक रूप सो काम कला उपजावै । काम सो केशव प्रेम बढ़ावत प्रेम लै प्राणप्रियाहि मिलावै॥२८॥ शब्दार्थ-दशा = (१) अवस्था, युवापन (२) चिराग को पत्ती । तेज बल । जोति-(१) प्रकाश (२)ज्ञान । तम- (१) अंधकार, (२) अज्ञान | शुभता=(१) सौन्दर्य