पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३७

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३३२ प्रिया-प्रकाश मूल-बरपा, शरद, बसंत, ससि, शुभता, शोभ, सुगंधु । प्रेम, पवन, भूषण, भवन, दीपक दीपक बंधु ॥ २३॥ भावार्थ-केशव कहते हैं कि ऋतु वर्णन में तथा चंद्रमा, सौन्दर्य, शोभा, सुगंध, प्रेम, पवन, भूषण और मानसिक भावों ( भवन ) के वर्णन में दीपक अलंकार खूब अच्छा लगता है क्योंकि ये वर्णन दीपक के बंधु (सहायक ) हैं। १-(मणिदीपक) मूल-इनमें एकहु बरनिये, कौनहु बुद्धि बिलास । तासों मरिणदीपक सदा, कहियत केशवदास ॥ २४ ॥ भावार्थ -ऊपर गिनाई हुई वस्तुओं के वर्णन में ही मणिदीपक (यधा) भूल-प्रथम हरिननैनी ! हेरि हरे हरि की , हरषि हषि तम तेजहि हरतु है । कशोदास आस पास परम प्रकास सों, बिलासिनी ! बिलास कछु कहि न परतु है । माँति भाँति भामिनि ! भवन यह भूषो नव, सुभग सुभाय शुभ शोमा को धरतु है। मानिनि । समेत मान मानिनीनि बशकर, मेसे दीप तेरो मन दीपित करतु है ।॥ २५ ॥ शब्दार्थ-~-हरि हरे-धीरे से देख । छिपे २ देख। जरा देख । सौं- (सौई ) सामने । तमतेज = अशान पर घिरह दुःख ।