पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३२

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तेरहवां प्रभाव भावार्थ-जहां उपमान के रूप से मिला हुआ, उपमेय का रूप वर्णन करें अर्थात उपमेय और उपमान को एक करके कहें, वही रूपक है। (यथा) मूल-बदनचंद्र, लोचन कमल, बाहुपाश ज्यों जानि । कर पल्लव अरु भूलता. बिंबाधरनि बखानि ॥ १३ ॥ भावार्थ-जैसे बदन और चंद्र को, लोचन और कमल को, बाहु और पाशु को, कर और पल्लव को,भृकुटी और लता को, तथा श्रोठ और बिंबाफल को एक करके कहें। यही रूपक वर्णन हैं। रूपक के भेद) मूल-ताके भेद अनेक मै, तीनै कहीं सुभाव । अदभुत एक विरुद्ध अरु, रूपक रूपक नाँव ॥ १४ ॥ भावार्थ ई-रूपक के तीन भेद-१-अद्भुत रूपक,२-विरुद्ध रूपक ३-रूपक रूपक। १-(अद्भुत रूपक) मूल-सदा एक रस बरनिये. जाहि न और समान । अद्भुत रूपक कहत हैं तासों बुद्धि निधान ॥ १५ ॥ भावार्थ-जिस उपमेय का जो उपमान परंपरा से चला आता है उसी से उसका रूपक वांधना और उस में कुछ अद्भुत कल्पना करना । जैसे मुख का उपमान 'कमल' सनातन से चला आता है, तो मुख को कमल बनाना, पर उसमें कुछ विलक्षण कल्पना करना, यह नहीं कि 'मुख कमल' कह कर छुट्टी की । अथवा 'कुच' का उपमान 'गिरि' परंपरा से