पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२६

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३२० प्रिया-प्रकाश उसी को देखेंगे, अन्य को नहीं)। पारसही = परवाही से । सारस कमल । लै रमी - लेकर अपने में रमा रखी है अर्थात् छीन ली है । सबिलास-सुन्दर । इंड = कमलनाल । दलयमा कोष - कमलकोश । कुल-कमलों के अनेक प्रकार । और यही बातें एक राजा में भी होती हैं श्रतः ध्वनि से कमल को राजा सम कहा। भावार्थ---( मुख वर्णन है )- हे बारी! तेरा लाज भरा मुख देख कर काम भी प्रशंसा करने लगता है (कि ऐसा मुस्त्र रति का भी नहीं है), यद्यपि वह सारे संसारी जीवों को मोहने में समर्थ है ( पर वह भी तेरे मुख पर मोहित होता है)। हे बारी! तेरे मुख पर कोटिन चंद्रमा निछावर कर डालू, जिसके लिये श्रीकृष्ण अाज तक यह व्रत लिये हुए हैं (कि सिवाय उसके हम और मुख देखें ही गे नहीं) । सुनती है कि मेरी बेपरवाही से तेरे सुन्दर मुख की सुखास कमल छीन ले गये है ( न जाने उन्हें क्या कमी थी), देवता जिनके मित्र हैं, गृथ्वी ही जिनका गढ़ है, जिनके पास दंड, दल, कोय, और कुल का बल है, उनके कौन बात की कमी थी ( व्याख्या )-मुख का वर्णन जैसा युक्त (उचित) है वैसा किया गया और कमल का भी वर्णन उपयुक्त शब्दों से चम- कारी कर दिया गया। (नोट)- हाल के प्राचार्य इसे 'स्वभावोचि' चाहें तो कहलं, पर इसमें प्रमत्कार अधिक ऊँचता है। (बारहवां प्रभाव समाल)