पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२९४

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ग्यारहवाँ प्रभाव सगा भाई ही है, जिससे सब के कलेजे हहर जाते हैं। अतः चंद्रमा को देखकर यदि मेरे नेत्र जलते हैं तो अनुचित क्या है, उसमें जलाने की शक्ति है ही। ( व्याख्या)-कहा यह गया है कि "मेरे नेत्र चंद्रमा को देख- कर जलते हैं और युक्ति बल से चंद्रमा का रूप शील गुण कहकर उसमें जलाने की शक्ति भी प्रमागित कर दी गई, परंतु वास्तव में तात्पर्य यह है कि मैं विरहिनी हूं अतः चंद्रमा मुझे दुख प्रद है और तू भी चंद्रमुखी है अतः तू भी मेरे सामने से दूर हो। (नोट)-अबके प्राचार्य तो इसे कायलिंग अलंकार कहेंगे। २--(अयुक्तअर्थान्तरन्यास) मूल-जैसो जहाँ न वृझिये तैसो तहां जु होय । केशवदास अयुक्त कहि बरणत हैं सब कोय ॥ ७० ॥ मूल- केशो दास होत मारासरी २ सुमार सीरी, आरसी लै देखि देह ऐसियै है रावरी । श्रमल बतासे ऐसे ललित कपोल तेरे, अधर तमोल धरे हग तिलचावरी । येही छविछकि जात छन में छबीले छैल, लोचन गँवार छीनि लैंहैं इत आव री। बारबार बरजति, बारबार जाति कत, मैले बार वारों आनिवारी है तु बावरी ॥७९॥ प्राब्दार्थ-मारसिरी= (मारश्री) कामदेव की शोभा। सुमार अच्छी सार पीट । तिलवावरी- सफेद और काले, सिता