पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८६

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ग्यारहगा प्रभाव बीस बिसे बलवंत हुते, जु हुती दृग केशव रूप रई जू । तोरि शरासन शंकर को पिय सीय स्वयंबर क्यों न लई जू ५। शब्दार्थ-न नाखी गई = लांधी नहीं गई। बीसबिले-वीसो बिस्वा (निश्चय ही)। छुते - थे। हुनी थी। रूपरई = रूप से रंगी ( रूपवती) बोसबिसे...रई जू = यदि तुम निश्चय बलवान थे और सीता तुम्हारी दृष्टि में रूपवती जंचती थी। जु-जो। भावार्थ--(मंदोदरी का कथन राषण प्रति ) सीता को चोरा लाकर तुमने लंका में मृत्यु की बेल वोई है, तुम उनसे रण में कैसे जीतोगे जिनके धनुष से खिंची हुई रेखा को लांघने का तुम साहस नहीं कर सके । यदि तुम निश्चय बलवान थे और सीता तुम्हें अति रूपवती अंची थी, तो शंकर का धनुष तोड़- कर स्वयंबर में ही उसको क्यों नहीं बरण किया। ( ब्याख्या) इस मंदोदरी के चित्त में भय का होना पाया जाता है । सीता बालंबन विभाव है, ये वचन ही अनुभाव हैं, 'भय' स्थायीभाव है, अतः भयानक रस है । बालक, स्त्री, अवल, नीच, तथा अयोग्य जनों को भय होता है । (पुनः) मूल-बालि बली न बँच्यो पर खोरि सु क्यों बचि हो तुम कै निज खोरहि । केशव छोर समुद्र मथ्यौ कहि कैसे न बांधिहै सागर थोरहिं । श्री रघुनाथ गनो असमर्थ न, देखि बिना रथ हाथिन कोहि ।