पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८५

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प्रिया-प्रकाश (विशेष)-भरत जी मामा के देश से आये हैं, केकई भारती उतारती है, उस प्रसंग का वर्णन है। राजा दशरथ की लाश घर में रखी है अतः मंगलाचार नहीं होते। शब्दार्थ-तोरनपुर के बाहर का सजीला द्वार। तूर = नुरही, सिंहा। ताल-मंजीरा । वरम्हाना=आशिर्वाद देना। छाडीगायक ॥ बारवधू = मंगलामुखी (पुर प्रवेश वा गृह प्रदेश समय इनका दर्शन मंगल सूचक माना गया है) तात= पुत्र । आरति = दुःख, करुणा। भावार्थ -भरत जी नानिहाल से अयोध्या में आये तो बड़े नगाड़ो का शब्द दूर से नहीं सुना, गुणी गायकों का शब्द भी नहीं सुना, तोरण नही सजा, सिंहा और मंजीरे नहीं बजे, भाटीने आशिर्वाद नहीं दिया, ढादियों ने गुणगान नहीं किया। ब्राह्मणों ने स्वस्ति बाचन नहीं किया, न वेश्याएं ही द्वार के निकट खड़ी देखी। केशव कहते हैं कि किसी प्रकार की मंगल सामग्री न देखकर और केवल माता को भारती मात्र उतारते देख कर ( तात के गात भारति बाढ़ी ) पुत्र के चित्त म दुःख बढ़ा। (व्याख्या )-शोक स्थायी है, मंगल सामग्री का अभाव उद्दी- पन है, अतः करुणा रस है। (अयानक रसवत) मूल-राम की बाम जो आनी चोराय सो लक में मीचु की बेलि बई जू । क्यों रण जीतहु गे तिन सो जिनकी धनु रेख न नाखी गई जू ।