पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७५

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प्रिया-प्रकाश (व्याख्या )-इसमें काम, अकास, सकाम, इत्यादि शब्द शिलष्ट हैं। इन्हीं के द्वारा हरि और हर में विरोध निकाला गया है। अतः इस अलंकार की परिभाषा यों होगी कि जहां श्लिष्ट शब्दों द्वारा दो पदार्थों में विभिन्नता, विरोध न्यूनाधिकता दिखलाई जाय उसे विरोधी श्लेष कहते हैं। हमारी सम्पति में तो यह एक प्रकार का अर्वाचीन ब्यतिरेका लंकार ही है। १३--(सूक्ष्मालंकार) मूल-कौनहु भाव प्रभाव ते, जानै जिय की बात । इंगित ते आकार ते, कहि सूक्षम अवदात ॥४॥ भावार्थ-किसी भाव, चेष्टा वा आकार से दूसरे के मन की बात समझ ली जाय, ऐसे वर्णन में सूक्ष्मालंकार माना जायगा। ( यथा) मूल-सखि सोहत गोप सभा महँ गोबिंद बैठे हुते दुति को परिकै। जनु केशव पूरण चंद् लसै चित चारु चकोरन को हरिक।। तिनको उलटो करि पानि दियो केहु नीरज नीर नयो भरिकै कहु काहे ते नेकु निहारि मनोहर फेरि दियो कलिका करिक।४।। (व्याख्या )-अर्थ तो स्पष्ट है। सभा में बैठे हुए कृष्ण को किसी ने कमल पुष्प में पानी भरकर और उलटा करके दिया। इससे कृष्ण ने यह समझ लिया कि कोई प्रेमिका हमारे विरह में कमतवत मुह लटकाये, निज कमल रूपी नेत्रों से जलडार रही है ( श्रासू बहा रही है ) । उसी प्रफु- ल्लित कमल को कृष्णा ने कलोवत बनाकर-संकुचित करके-