पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७०

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ग्यारहवाँ प्रभाव सजल श्रावदार, पानीदार। सहित अंग-मूठ सहित । विक्रम प्रसंग रंग-युद्धकार्य में चाव रखने वाला अर्थात् खूब चलता हुआ (अति तीक्ष्ण धार धाला। कोष-म्यान । दीन: = कायर ! प्रतिमद = शत्रु। दुनी दुनिया, संसार । दान = गजमद ( यहां केवल) मद, मस्ती। भाार्थ-रामजी की तलवार कैसी है कि पहले तो घोड़सवार क्षत्री राजाओं पर घलती है (फिर इतर सेनानी पर ), सुन्दर रंगवाली ( चमकीली) और बहुत लम्बी है। पानीदार है, मूठ सहित है, बल प्रयोग के समय रंग दिखलाती है ( प्रयोग के समय खूब काम करती है) म्यान से चमचमाती हुई निक- लती है और अपने दल को धैर्य दिलाने वाली है। कायरों पर दया दर्शाती है, शत्रुओं को शालती है, कीति का प्रति- पालन करती है, सारा संसार उसको जानता है। दुनिया के लोगों का समस्त मद उसको देखकर लुप्त हो जाता है (उसके सामने किसी शस्त्र का बल नहीं चलता) ( व्याख्या-केशव ने इसका नाम अभिन्न क्रिया इस हेतु रखा है कि इसमें दोनों पक्षों के लिये "प्रयोगियतु" एकही क्रिया प्राई है। परंतु दोनों पक्षों का फल विरुद्ध है, दान का फल पालन करना, कृपाण का फल प्राण हरण करना। अत: मेरी सम्मति से इसकी परिभाषा यों होनी चाहिये:- श्लेष में जहां विविध पक्षों के लिये क्रिया एकही हो, पर उसका फल विरुद्ध हो वह अभिन्न क्रिया श्लेष कहलावेगा। २-(भिन्न क्रिया श्लेष) कछु कान्ह सुनौ कल कूकति कोकिल कामकी कीरति गावति सी। पुनि बातें कहै कल भाषिनि कामिनि केलि कलानि पढ़ापति सी ॥