पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६८

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ग्यारइयाँ प्रभाव (और भेद) (सूचना)-केशवदास जी श्लेष के पांच भेद और भी बतलाते हैं, पर अर्वाचीन श्राचार्य इन भेदों को नहीं मानते। (यथा) मूल-बहुन्यौ एक अभिन्न क्रिय और भिन्न क्रिय जान । पुनि विरुद्ध कर्मा अपर नियम विरोधी, मान |॥ ३६॥ भावार्थ-(१)-अभिन्न क्रिया श्लेष, (२) भिन्न क्रिया श्लेष, (३) विरुद्ध कर्मा श्लेष, (४) नियम श्लेष और (५) विरोधी श्लेष, ये पांच प्रकार के श्लेष भी केशव ने लिखे, परंतु परिभाषा नहीं दी। अतः उदाहरण से ही जो तात्पर्य हमारी समझ में आया है उसी के अनुसार हमने परिभाषा दी है। १-(आभिन्न क्रिया श्लेष) मूल-प्रथम प्रयोगियतु बाजि द्विजराज प्रति. सुवरण सहित न विहित प्रमान है। सजल सहित अंग विक्रम प्रसंग रंग, कोष ते प्रकाशमान धीरज निधान है। दीन को दयाल प्रतिभटन को शाल करै, कीरति को प्रतिपाल जानत जहान है। जात हैं विलीन वै दुनी के दान देखि राम- चन्द्र जू को दान कै. केशव कृपान है ॥४०॥ शब्दार्थ-(दान पक्ष में )-अयोगियतु = प्रयोग में लाते हैं