पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६६

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ग्यारहवा प्रभाव ( भिन्नपद श्लेष वर्णन) मूल--पदही में पद काठिये ताहि भिन्न पद जानि । भिन्न अर्थ पुनि पदन के, उपमा श्लेष बखानि ॥३६॥ भावार्थ--एक पद को काटकर दो या तीन पद करें अथवा पदों के भिन्न भिन्न अर्थ लें उसे भिन्नपद वा उगमाश्लेष कहते हैं। इसे उपमाश्लेष इस हेतु कहते हैं कि ऐसे श्लेष प्रायः उपमा के लिये लिखे जाते हैं । यथा;- मूल-बृषभ बाहिनी अंग उर, बासुकि लसत प्रवीन । शिव सँग सोहै सर्वदा शिवा कि राय प्रवीन ॥३७॥ (सूचना)-इसके अर्थ के लिये देखो प्रभाव १ छेद नं ६० । यहां केवल यह बतलाना है कि इसमें वृषभ, बामुकि, प्रवीन और शिव शब्दों के भिन्न भिन्न अर्थ लगेंगे। वह कारीगरी केवल प्रवीण राय की उपमा ( समता) पार्वती से देने के लिये की गई है। (पुनः) मूल-रजै रज केशोदास टूटत्त अरुण लार, प्रतिभट अंकन ते अंक पै सरतु है। सेना सुन्दरीन के बिलोकि मुख भूषणनि, किलकि किलकि जाही ताही को धरतु है ।। गाढ़े गढ़ खेलही खिलौननि ज्यौँ तोरि डारे, जग जय जश चारु चंद्र को अस्तु हैं। चंद्रसेन भुवपाल आंगन विशाल रण, तेरो करवाल बाल लीला सी करतु