पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्यारहवाँ प्रभाव सरम क्यों नहीं करते )। जो नृसिंह हिरण्यकश्यप के हता और प्रहलाद के हितू हैं, भृगु चरण चिन्ह को वक्ष पर धारण किये हैं, और वेदों में जिनका बखान है। ऐसे नसिंह जी ही रिन रूपी हाथी को मारने में समर्थ हैं ( क्योंकि सिंह ही हाथी को मारता है। शब्दार्थ-( राना अमरसिंह पक्ष )---धरणि---ईश राजा । चतुरमुख = चारो ओर। कमला = सुन्दर स्त्रियां। हिरण == (हिरण्य ) सोना । कशिपु = शैय्या, सेज, आसन। प्रहलाद - बड़ा श्रानंद। द्विज - ब्राह्मण । भावार्थ-दरिद्र रूपी हाथी को मारने में राना अमरसिंह ही समर्थ हैं। जिनके चरणोदक को बड़े बड़े राजा मस्तक पर धारण करते हैं, और चारो ओर सब लोग जिसको सुख दाता यताते हैं। जिनके कोमल अमल चरण वरांगनाओं के कर कमलों से सेवित हैं, अनेक गुण युक्त हैं, उन्हें श्यों न हृदय में स्थान दीजिये । जो सोने की शय्या दान करते हैं और बड़े आनंद के हित हैं ( सदैव आनंदित रहते हैं ), और जो ब्राह्मणों के चरणों को हृदय में रखते हैं और वेदों के ध्या- ख्याता हैं (बड़े विद्वान हैं ), ऐसे राना अमरसिंह ही दरिख रूपी हाथी को मारने में समर्थ हैं ( एक तो 'सिंह', दूसरे 'अमर', फिर क्यों न हाथी को मारेगा) (नोट)-राना अमरसिंह की प्रशंसा में इस पुस्तक में कई छंद हैं। इन छंदों से जान पड़ता है कि केशव किसी समय राना जी के दरबार में गये थे और रानाजीने इनका अच्छा सम्मान किया था। ये अमरसिंह, चित्तौर पति महाराणा प्रतापसिंह के पुत्र ही थे।