पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२४३

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ग्यारहवाँ प्रभाव (आठ सूत्रक) मुल योग अंग, दिगपाल, बसु, सिद्धि, कुलाचल चारु । अष्टकुली अहि, व्याकरण, दिग्गज, तरुणि विचारु ॥१६॥ शनार्थ-योग अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्या- हार, ध्यान, धारणा, समाधि। दिगपाल = इन्द्र, अलि, यम, नैऋत, बरुण, वायु, कुबेर, ईशान । अष्टवसु = जल, ध्रुव, सोम, धरा, अनिल, अग्नि, प्रत्प, प्रभास । अष्टसिद्धि अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्या, वशित्व । कुलाचल = हिम, मलय, महेन्द्र, सह्या, शुक्ति, क्ष विध्य, परियार । अष्ट कुल ना = तक्षक, महापन, शंख, कुलिक, कंबल, अश्वतर, धृतराष्ट्र, बलाहक ! अष्टव्याकरण - इन्द्र, चंद्र, गार्थ, साकल्य, सकट, कात्यायन, जयनेन्द्र और पाणिनि । विगज - ऐरावत, पुंडरीक, वामन, कुमुद, अंजन पुष्पदंत, सार्वभौम, सुप्रतीक । अष्टनायिका - स्वाधीनपतिका, उत्कंठिता, बालकलजा, कल हलविता, खंडिता, प्रोशित पतिका, विप्रलब्धा, अभिसारिका ( देखो रसिक प्रिया, प्रभाय सप्तम) (विशेष)-अष्टयाम, ब्रह्मा के कान, दिशा, धान (सोता चांदी इत्यादि ) भी आठ मानते हैं। (नव सूचक) भूल- अंगद्वार, भूखंड, रस, ब्राधिनि कुत्र निधि जानि । सुधाकुंड, प्रह, नाटिका, नवधा भक्ति बखानि ॥२०॥ शब्दार्थ-अंगद्वार =शरीर के नव छेद । भूखंड- पृथ्वी के नव खंड । इलावर्स रम्यक, कुरु, हरि, किंपुरुष, भरत, केतुमाल,