पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२६

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प्रिया-प्रकाश % 3D प्रिय ! प्रबल जीव यहि विधि अबल,सकल बिकल जलथल रहत। तजि केशवदास उदास मति. जेठ मास जेठे कहत ॥२६॥ शब्दार्थ-भूत = तत्व । भजि पंचभूत भ्रम= "पंचभूत मय संसार है" यह भ्रम भग जाता है। अनिल = पवन । अंबु = जल । पंथ थकित रास्ता चलना बंद हो जाता है (जेठ में सफर करना वैद्यक से मना है )। मद मुकित = मस्ती छोड़- कर ( प्रवाद है कि हाथी वसंत में कामातुर होकर मस्ताता है, और ग्रीष्म में उसका मद उतर जाता है)। सुखित सूखे हुए । (मन्वय ) सुखित सर जोवत सिंधुर मद मुकित ( होत ) = सूखे सरोवर देखकर हाथी भी मस्ती छोड़ देता है। काकोदर सर्प । कर कोष- सूंड की कुंडली । तजि- छोड़ दीजिये (विधि क्रिया है)। उदास मति-घर से उदास होकर विदेश जाने की राय । जेठे-गुरु जन । भावार्थ-जेठ में, यह पंच तव मय सृष्टि एक भृतमय ही जाती है, पंचभूत मय होने का भ्रम छूट जाता है । पवन, पानी, आकाश और पृथ्वी सब अग्निवत (गर्म ) हो जाते हैं। रास्ता चलना बंद हो जाता है, सूखे तड़ाग देख कर हाथी भो मस्ती छोड़ देता है। हाथों की सूंड की कुंडली में सर्प सोता है और हाथी के येट के नीचे सिंह आराम करता है (मारे गर्ती के स्वाभाविक बैर विरोध भूल जाते हैं)। हे प्रिय ! थल के ऐसे प्रवल जीवगण इतने निर्बल हो जाते हैं, और जलस्थल के जीव भी सब बिकलही रहते हैं ( क्योंकि जल भी तो अभिवत गर्म हो जाता है),अतः जेठे लोग ऐसा कहते है कि जेठ में घर से उदास होकर विदेश जाने की सम्मति छोड़ देना चाहिये।