पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१९

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प्रिया-प्रकाश चित्रिनी हौं चित्रन में परम विचित्र तुम्हें, चित्रन में देखि देखि नैनन नवाइहै ।। काम के बिरोधी मत शोधि शोधि साधि सिद्धि, वोपि बोधि अवधि के बासह गँवाइहै । केशोराय की सौ मोहि कठिन अहै है वा की, उस रासिक लाल पाल को स्ववाह है ॥१४॥ भावार्थ- कृष्ण प्रति राधिका की चिया सखी का कथन ) हे ! आप के गुण वर्णन के गीत अच्छे स्वर और सुन्दर ढंग से गाकर खलिता जी उसके कानों को प्रसन्न रखेगी। मैं चितेरिनीव, चित्र खींचने में परम चतुर है, अतः तुम्हारे सुन्दर सुन्दर चित्र खींच खींच कर उसे दिखलाश करगी जिन्हें देखकर लजा से वह क्षेत्र नीचे कर लिया करेगी। लिद्धि नाम्नी सती का विडोधी मत (बान विवेमय उप- देश ) ईद २ कर उसे सुना कर प्रबोध दे दे कर किसी प्रकार अवधि के दिन बितावेगी, परंतु ईश्वर की शपथ है, मुझे यह कठिनाई जाल पड़ती है कि हे लाल ! उसकी रसीली जीभ को प्रल कौन जिलाचगा? (मोट)बह आपही के हाथ का लगाया लान पसंद करती थी, सो अव श्राप विदेश जा रहे हैं, अब यह काम कौन कर सकेगा, अत्तः तुम विदेश म जानो, यह बाधा सूचक संशय बचन हैं) ५-(मरणाक्षेप) मूल मरण निवारण करत जह, शाज निवारण होस । जानहु मरणाक्षेप वह, जो जिय बुद्धि उदोत ॥१५॥