पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०६

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नवा प्रभाव योगिन की सिद्धि, सब जग की सकल सिद्धि, केशोदास दास ही ज्यों दासन को देत हैं ॥२६॥ शब्दार्थ-श्रोपकांति। श्रोषित-पानी चढ़ाया हुआ । विषम नैन-तीन नेत्र । लोकन विलोप करें -प्रलयकारी हैं। विषधर =सर्प । विभूति= भस्म । पातक पिता के युत = ब्रह्मा का शिर काटने का पाप जिनको लगा है। पातकी ही को तिलक-कलंकी चन्द्रमा को तिलक बनाये हैं ( मस्तक पर धरे हैं)। भावै गीत काम ही को - काम दहन की प्रशंसा जिसे भाती है । कामिनी के हेत हैं गौरी के हितुवा हैं, प्रेम सहित अद्धागिनी बनाये है । दासी-लौंडी, बांदी। भावार्थ-स्पष्ट है। ( ब्याख्या )---महादेव जी स्वयं अमंगल रूप हैं, पर योगियों को सांसारिक दासों को सब प्रकार की सिद्धियां देते हैं। अपर्याप्त कारण से कार्य को पूर्ण सिद्धि । भूल-बाजी नहीं, गजराज नहीं, रथ पत्ति नहीं, बलगात बिहीनो । केशवदास कठोर न तीक्षण, माल हू हाथ हथ्यार नलीनो । जोग न जानत, मंत्र न जंत्र, न तंत्र न पाठ पढयौ परबोनो । रक्षक लोकन के,सुगवारिनि एक बिलोकनि ही वश कीनो। शब्दार्थ-बाजी = घोड़ा। पत्ति = पैदल । बलगात बिहीन = अबला । रक्षक लोकन के श्री कृष्ण जी गॅवारिनि = ग्वालिन (देहातिन)। एक बिलोकनि एक नजर से। भावार्थ -सरल और स्पष्ट है।