पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०१

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प्रिया-प्रकाश हास्य है ) पर धतूरे की तरह सूी लाने वाला है ( है तो अमृतमय पर काम बिष का करता है, यही विरोध है) तेरे पायों में सुन्दर हल की सी चाल है, परंतु दूसरों के मन हरण करने का स्वभाव न जाने उसे किसने सिखाया है ( श्लेष से, जिसकी पवित्र परमहलों की सी दशा हो वह पराया मन हरण करे, यह विरोध है)। एक बार देखने से कृष्ण के समान पराक्रमी पुरुष को बल से वश में कर लेती हो, ऐसी बलवती तो तुम बाल क्यस में ही हो ( बालावस्था में ही कृप्या ऐसे बली को बश में कर लेना-यही विरोध है)। हे सखी ! तेरा विश्वास कैसे करू', तेरे कृष्णानुसारी नेत्र अब कानुसारी होने जाते हैं (आकर्ग लंबायमान होते जाते हैं )-( कृष्ण भक्त का कानुसारी होवा-यही विरोध है) (नोट)-दूसरे तथा चौथे चरण में श्लेष के कारण विरोध नहीं रहा, विरोधाभास हो गया है। (पुनः) मूल-भायु सितासित रूप, चितै चित श्यामशरीर में रंग राते । केशव कानन हीन सुनें, सु कहै रस की रसना बिन बालें ॥ नैन कियौं कोउ अंतरयामी री जानति नाहिंन बूझति तातें । दूर लौं दौरत हैं बिन पायन दुर दुरी दरसै मति जातें ॥२१॥ शब्दार्थ-सितासित = (सित-असित ) सफेद और काले । श्यामशरीर-कृष्ण के तन को । गैं रंग रात= अनुरागग से रंग देते हैं। अंतरयामी सबके मन की बात जाननेवाले। दूर दुरी दरसै मति जाते जिससे अति दूर भन में छिपी बात प्रगट हो जाती है।