पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१९७

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प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ --वक्र टेढ़ी। लोचन श्री नेत्र शोभा (चितवन)। विमुकाना-वेगयुक्त चंचल कर देना। विझुकी =अति चंचल । रागमई-लाल। भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। ३-(हेतु अलंकार वर्णन) मूल हेतु होत है भांति है, बरनत सब कबिराव । केशवदास प्रकास करि, बरनि समाव अभाव ।। १५ ।। भावार्थ-सभाव हेतु वह हेतु है जो अन्य हेतुओं द्वारा अली है। अभाव हेतु वह है जो स्वयं निर्बल हो परंतु कार्य करें। तीसरा समाच-अभाव हेतु भी होता है। (सभाव हेतु का उदाहरण ) मूल-केशव चन्दन वृन्द पने अरविन्दन के मकरंद शरीरो। मालती, बेल, गुलाब, सुकेसरि, केतकि, चेपक को बन पीरो। रंभन के परिस्भन संभ्रम गर्व धनो घनसार को सीरो। शीतल मंद सुगंध समीर हरयो इनसों मिलि धीरज धीरो।१६ शब्दार्थ-शरीरो अपने शरीर में लेकर । बेल-बेला रंभा- केला। परिरंभन - मिलाप, प्रालिंगम्। संभ्रम दौडधूप । धनसार = कपूर । सीरो ठंढा। धीरो-धीरे धीरे। भावार्थ-समीर ने, चंदन से सुगंधित होकर, कमल, मालती, बेला, गुलाब, केशर तथा केतकी के मकरंद से लादकर मंद गति होकर, तथा दौड़ दौड़ कर केलों से मिल २ कर उनके कपूर से शीतलता लेकर ( इतने अन्य हेतुओं द्वारा बली होकर) श्रीरे धीरे इनका धैर्य हर लिया ( समीर ने धैर्य हरण किया, पर अन्य हेतुओं से बली होकर)