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प्रिया-प्रकाश D जिन्हें भूषणवत प्यारा है, अपने देश को । हार दूषण होत हार ( पराजय) को ही दूषण समझते हैं। भावार्थ-पहले तो भीरु ( कायर) लोगों को भय लगती है (और वे भग जाते हैं ) पर शूर वीरों की रुचि में रोष आता है और उनके शरीर में क्रोध की गरमी से स्वेद पा जाता है पर भय से कांपते नहीं। प्यारे प्राणों की बाजी लगती है, हाथी और पैदल चलते है। शंख, तूर, दमामें इत्यादि के उत्साहवर्धक अनेक शब्द होते हैं, ब्राह्मण लोग दान पाते हैं (अथवा रणभूमि में गृहादिक पक्षी मांस दान पाते हैं) हाथों में तलवारें और बरछियां होती हैं जो स्वमान की रक्षा करती हैं। और धीर लोग सज सज कर शत्रु के हाथों के प्रहार सहते हैं। बीर लोग स्वदेश ही को सर्वोत्तम भूषण समझते हैं और पराजय (हार) को ही समस्त दोषावह जानते हैं। लोग समर की रीति ऐसी वर्णन करते हैं। आठवां प्रसाव समाप्त ama-