पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१८७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश चान नहीं रही कि कौन अपना है कौन पराया है, शीतल और उष्ण का ज्ञान भी नहीं है । थोड़ी ही देर में राधिका की ऐसी दशा हो गई है कि कहने योग्य नहीं। हे कृष्ण ! न जाने क्यों एक बारगी ( सहसा ) उसके सातो सुख छूट गये हैं। नोट ) कृष्ण को देखकर पूर्वानुराग में सहसा राधिका की हा दशा हुई है उसी का वर्णन कोई सखी कृष्ण से करती है, सात्पर्य यह है कि चलकर उसे दर्शन दो नहीं तो वह मर जायगी। (खयम्बर वर्णन) भूल-शची खयम्बर निणी, मंडल मंच बनाव । रूप, पराक्रम, वंश, गुण बरणिय राजा राच ॥ ४॥ शब्दार्थ-शची स्वयंवर रक्षिणी = स्वयंवर की रक्षा करने वाली देवी इन्द्राणी मानी गई है। मंडल मंच बनाय= मंचों की स्थिति मंडलाकार वर्णन करना चाहिये । (यथा) मूल-मंडली मंचन की, नृपं मंडल, मंडित देखिय देव सभा सी। दंतन की दुलि,देह की दीपति,भूषन ज्योति अनंत अमासी॥ फूलन की छवि, अंदर की छबे, छत्रन की छवि तत्क्षणभासी । सोहति है अति सीय स्वयंबर आनन चंद्र प्रवेष प्रभासी ॥४५॥ आब्दार्थ-अभासी =अाभासित हुई, जान पड़ी। प्रवेष = (परिवेष) चंद्रमा के गिर्द का ज्योतिर्मडल। भावार्थ-स्वयंबर स्थान में मंचों की मंडली है, जिनपर अर्ग बैठा है। वह दृश्य देवसमा के समान है। मुसकुराते न्य