पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१८४

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साठवाँ प्रभाव . तरह चपलता से हेरते हेरते । बनमाली ब्रज - बन समूह से युक्त ब्रजमंडल । बनमाली - मेघ । बनमाली - कृष्ण जी। हृदय कमल नैन = हृदय कमल केनेत्रों से।कमल नैन = कृष्णजी। कमलनैनी = जलयुक्त पाखों वाली ( रोती हुई )। आप घने = पानी भरे हुए । धन-लोहे का भारी हथौड़ा जिससे लोहार लोहा पीटते हैं । सावन के चौस इस बर्षाऋतु में । धन- स्यामकृष्ण भावार्थ-(सखी प्रति नायिका का वचन है) हे सखी! इन हरे हरे जंगलों और मैदानों को देखकर, जिन को देख कर तेरा हृदय विमुग्ध होता है, मैं थक गई क्योंकि इनमें मुझे कहीं कृष्ण नहीं मिलते। बन समूहों से वेष्ठित इस व्रज मंडल पर मेव बरस रहे हैं, और कृष्ण मेरे निकट दहीं हैं यह दुःख में कैसे सहूं । ( यदि तू कहै कि हृदय कमल के नेत्री से कृष्ण का ध्यान करके संतोष कर, तो हे सखी! ऐसा करने से तो मैं जल पूर्ण क्षेत्र वाली ही होऊंबी (ध्यान करने से अधिक रोऊंगी) और अधिक क्या कहूं । ये जल से भरे खूब काले बादल मेरे लिये तो धन ही होते हैं (घन की सी चोट देते हैं) मला बतला तो इन सात के दिनों में मैं कृष्ण बिना कैसे जीवित रह सकती हूं। (प्रवास विरह) मूल-मेह कि हैं सखि आँसू, उसाँसनि साथ निसा सु विसासिनि बाड़ी। हाँसी गयी उहि हंसिनि ज्यों, चपला सम नींद भई गति काही ।।