पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१८२

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१०२ प्रिया-प्रकाश नाह के निहोरे किन मानति निहोरत है, नेह के निहोरे फेरि मोहि तू निहोरिहै ॥४०॥ (नोट)-रसिक प्रिया में यह कवित्त नायक के मध्यम मान्न के उदाहरण में दिया है । देखो रसिक प्रिया, प्रकाश ९ छंद नं०१९) अतः यह सखी का कथन नायक प्रति है कि जब तुम नायिका को मनाने गये ये तब मैंने ऐसी बाते उससे कही थीं, पर वह न मानी। अब तुम मान कर बैठे हो सो उसने मुझे तुम्हें मनाने को भेजा है। अब मान छोड़ो और चलकर उससे मिलो, नहीं तो तुम्हें भी पछताना पड़ेगा। शब्दार्थ-सारस= कमल । सरसबढ़कर । सारस सरस मुखी = कमल से बढ़कर मुख वाली । पारसी लै देखि मुख- (क्योकि अभी तेरे मुख पर से मान की भाभा ही नहीं)। या रस में बोरि है = फिर कभी तू नायक के प्रेमरस में डूबेगी। सोमा.."तू-तू नायक की शोसा देखने के निहोरे से भी नहीं देखती। सब सब सखियां । खोरिदोष । सुख को... नतेरे सुख के लिये हमने तुझे समझाया, पर तूने न माना, यह अच्छी बात नहीं की। केशोराय' "मोरिहै = तुझे नायक ही की सौगंद है, तू अब मान न छोड़ना ! नाह के निहोरे: = नायक के मनाने पर । नाह के निहोरे..."निहोरि है =अभी नायक के मनाने पर नहीं मानती फिर कभी ऐसा होगा कि नायक का प्रेम तेरे हृदय में उमड़ेगा, तब तू मुझसे चिनती करेंगी कि अब नायक को मना लाओ। (नोट) पहले नायिका ने मान किया था। नायक मनाने अाया। बहुत मनाने पर भी वह नहीं मानी (मान नहीं छोड़ा ) तब नायक रुष्ट होकर मान कर बैठा (कि लो