पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७६

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प्रिया-प्रकाश ढाह गढ़, जैसे धन, भट ज्यों भिरत रन, देसि देखि आशिषा गणेश जू के भोरे गौरि । बिंध के से बांधव, कलिंदनंद से अमंद, बंदन के सूंड भरे, चंदन की चारु खौरि । सूर के उदोत उदैगिरि से उदित अति, ऐसे गजराज राजै राजा रामचंद्र पौरि ॥२८॥ शब्दार्थ-पगार = वह जल जिसे पायाव पार कर सके। जल कै पगारजो कितनेही गहरे पानी को पायाब पार कर जाते हैं। पर पुर पारै रौरि-शत्रु के नगरों में दरिद्रावस्था उपस्थित कर देते हैं । (ना भ्रष्ट कर डालते हैं)। जैसे : धनबादल समान काले। अाशिषा=अाशिर्वाद । भोरे- धोखे। बिंध- विध्याचल पर्वत । कलिंद नंद = कलिंद पर्वत के पुत्र । अमंद = सुंदर। चंदन के सूंड भरे सिंदूर से रंगी सूट है जिनकी । पौरिद्वार। सूर "अति = सूर्योदय के समय के उदयाचल पर्वत के समान अति सुंदर। भावार्थ--श्रीराम जी के द्वार पर ऐसे हाथी बँधे हैं, जो इतने अंचे हैं कि कितना ही गहरा पानी क्यों न हो उसे पायाव ही पार कर जाते हैं, निज दल के सिंगार हैं, शत्रु दल को विगाड़ कर शत्रु पुरों को नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं । गढ़ों को गिरा देते हैं, बादल से काले हैं, रण में योद्धाओं के समान लड़ते हैं, और जिन्हें गणेश जी के धोखे में पार्वती जी आशिर्वाद देती हैं। जो विंध्याचल के भाई से ऊंचे, कलिंद पर्वत के पुत्र सम काले और सुंदर हैं, जिनकी संडे सिंदूर से रंगी हैं और