पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश स्वभाव । वयुष शरीर । घट की घटना = शरीर की चेष्टायें (हिलना डोलना, स्वाभाविक चलना फिरना ) घटीवघटी प्रति घड़ी। सीकर तुषार- श्रोसकण । स्वेद - पसीना। प्रिया प्रीतम बिमुख-विरहिनी । की किधौं । (भावार्थ)-निर्मल कमल दलों में रोचकता नहीं रह गई, ठंडी हवा उन्हें धीरे धीरे जलाये डालती है, सदी के दुःख का बड़ा डर है। लोगों के शरीरों का ऐसा स्वमा हो गया है कि ठंढ के कारण न तो पानी पिया जाता है, न चंदन लगाया जाता है, न वंद्रमा की ओर ताका ही जाता है। प्रति घड़ी शरीर की चेष्टाएं घटती जाती हैं (लोग चलना फिरला काम करना नहीं चाहते-निशेध रहना पसंद करते हैं), सूर्य की मुख छवि प्रतिक्षण घटती है ( सूर्य का तेज मंद पड़ता जाता है ) और सुख की भी मुखछबि क्षीण होती है (कम सुख मिलता है-शीत से कष्ट अधिक होता है), (यदि किसी प्रकार स्वेदन क्रिया की जाय तो) पसीना निकलते ही सरदी से हिमकण बन जाते हैं, ऐसी सर्द हेमंत ऋतु है था विरहिनी नायिका है। शब्दार्थ-(विरहिनी पक्ष) ललित गति सुन्दर चाल । घरना रचना । रवि मुख- सूर्य सम तेजवाल मुख । श्रीतम विमुख-विरहिनी। भावार्थ-( कैसी विरहिनी है ) विरहनी की यह दशा होती है कि उसके कमलदल वत् लोचनों को तथा उसकी सुन्दर गति को शीतल बायु जला देती है ( निकम्मे कर देती है), उसे दुःख का बड़ा डर लगा रहता है। उसके शरीर की प्रकृति ऐसी हो जाती है कि उससे पानी नहीं पिया जाता,