पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५१

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सातवां प्रभाव धावत क्ली धनुस सोहत निपानि सर, शवर समूह कैयौं श्रीषम प्रकासु है ॥३०॥ शब्दार्थ-(शवर पक्ष में )-चंडकर कलित = बलवान भुजाओं से युक्त । बलित बर=दल से युक्त । सदागति-सदैव घूमने बाले। हिरद-हाथी। दिनकृत = रोज रोज़ के काम। श्रवन = प्रवचन, खून का दहना या उपक्रमा। निपानि सर-हाथ में अचूक बाण लिये हुए। भावार्थ-( शवर समूह कैसा है कि ) जिनकी भुजाएं खूब बलवती हैं, जिनके शरीर में बहुत बल है और जो सदा धूमाही करते हैं तथा जिनके द्वारा कंद, मूल, फल, फूल और पत्तों का नाश हुअाही करता है। जिनके रोज़ रोज़ केवल यही काम है कि कीचड़ में निमग्न मछलियां, बिलों में घुसे सर्प, गुफा में छिपे शूकर समूह तथा हाथी क्या बचने पाते हैं ( नहीं बचने पाने ), बन बन धूमकर स्थावर जंगम जीवों का जीवन हरण करते हैं, और केशव कहते हैं कि जिनके निवासस्थानों में भृगों के सिरों से रक्त टपका करता है, जो धनुष और अचूक बाण हाथ में लिये दौड़ते फिरते हैं। शब्दार्थ--(ग्रीष्म पक्ष में )-चंडकर = तीन किरण वाला सूर्य। घर-श्रेष्ठ । सदागति= हवा, बायु । दिनकृत = (दिनकर) सूर्य । बन-जल ! मृगसिर श्रवन = जिस ग्रीष्म में न श्रवित होने वाला भृगशिर नक्षत्र पड़ता है (सूखा मृगशिरा नक्षत्र पड़ता है ) बली = गैंडा नामक बन जंतु । धनुस- मरुस्थल । भनुस सोहत मरुभूमि की तरह प्यासा वा हतबल । निपानि सर-जल रहित तड़ाग, सूखे सरोवर । भावार्थ-(प्रीष्म ऋतु फैली है (क) :चंड तपने वाले सूर्य