पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२१

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प्रिया-प्रकाश तुझे और कुठौर का ज्ञान नहीं है, जबरई उसी से ठगाया जाता है जिसे तू स्वयं ठगना चाहता है। (तुझे चाहिये था कि तू संसार को ठग ले-मुक्ति प्राप्त करेपर तू तो स्वयं ही संसार से उया जा रहा है-सांसारिक विषयों में फंसा है । हे निडर तू इस पाप के डर से डरकर जरा भी नहीं कांपता, और अन्य सांसारिक डरों से ( भूख, प्यास वा भोगभाव के डर से ) डॉगी की तरह कापता है। ऐसे ( उगविद्या पूर्ण) संसार से उदासीन होकर नारायण का भजन क्यों नही करता, क्यों उसमें (संसार में) लिप्त होता है। रामकी सौगन्द यह संसार झूठा है, पर किसी सच्चे का बनाया हुआ है इससे सञ्चा सा जान पड़ता है। २५-(मंडल वर्णन ) मंडल-मंडलाकार बस्तुएं । मूल केशव कुंडल, मुद्रिका, बलया, बलय, बखानि । श्रानबाल. परिवेष, रबिमंडल मंडल जानि ।।५ शब्दार्थ-कुंडल कान का बाला । बलया-चूड़ी। बलय = कड़ा। बालबाल थाला। परिवेष-ज्योतिर्मय परिधि जो चंद्र वा सूर्य के गिई पड़ती है। रविमंडल - सूर्य के गिर्द का घेरा। सूल-मणिमय बालबाल जलज जलज रमि-- मडल में जैसे मत्ति मोहै कबितानि की। जैसे सविशेष परिबेष में अशेष रेख, शोभित सुबेघ सोम सीमा सुखदानि की ।