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छठाँ प्रभाव

छठा प्रभाव शष्टार्थ-बुध अधिमाल। शनि =शनिश्चर (गुरुवहस्पति सारस एकवीमावाला पक्षी विशेष जिसकासिर लाल होता है। यह एक्षी बहुधा जलाशयों के निकट बसता है। 'गति'- इसका वध शनि शुरु इत्यादि सा सब्दों के साथ समझना चाहिये। मूल----कोमल विमल मन, बिमला सी सखी साथ, कमला ज्यों लीन्हें हाथ कमल सनाल के। नूपुर की धुनि सुनि, मारें कलहंसानि के, साकि कि परै चारु चेटुना मराल के। कचन्द के भार, कुच भारन, सकुच भार, लचकि लचकि जाति कटितट बाल के। हरे हरे बोलति बिलोति सति हरें, हरे हरे दलति हरति मन लाल के । ३६ । शब्दार्थ-विमला रस्ती। भोरे भोले ब्रटुना - सच्चे सकुलजार कसकर हर हर धीरे धीरे। भावा-कोर और निर्मल शनवाली सरस्वती समान चाली सखी कोयलिये, और सभी के समान हाय में लाल कमल लिये हुए जिनो जूरी का सुनकर हलों के बोखे में इंसीके सच चोंक उठले हैं। बालो, कुचो, और लजा के भार से जिसकी मर लचकी जाती है, ऐसी सुन्दर बाला धीरे धीरे बोरस्ती, देखती और हलती है तथा धीरे ही धीरे चलकर नायक के मन को हराकी है। (नोट)-इसमें कुलांगना की प्रत्येक शिया मंदगति थाली बणा की गई है।