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शब्द विन्यास विभिन्नता

शब्द-विन्यास विभिन्नता शब्द-विन्यास में भी विभिन्नता इस ग्रन्थ में आप लोगो को मिलेगी, ऐसा अधिकतर पद्य की भाषा का विचार कर के और कहीं कहीं छन्द की अवस्था पर दृष्टि रख कर हुआ है। ‘रोये बिना न छन भी मन मानता था',‘गेना महा अशुभ जान पयान वेला' यदि मैं इन चरणों में छन के स्थान पर क्षण, पयान के स्थान पर प्रयाण लिखता तो इनके लालित्य में कितना अन्तर पड़ जाता। इसी प्रकार यदि में ‘सचेष्ट होते भर वे क्षणेक थे, इस चरण में क्षणेक के स्थान पर छनेक लिख देता तो इसके ओज और रस में कितना विभेद होता, और यही कारण है कि आप इस ग्रन्थ में कही छन कही क्षण, कहीं-भाग कहीं भाग्य, कहीं पयान कहीं प्रयाण इत्यादि विभिन्न प्रयोग देखेंगे।

मैने इस विषय का पूर्ण ध्यान रखा है कि ग्रन्थ की भाषा एक प्रकार की हो, और यथाशक्य मैने ऐसा किया भी है, तथापि रस और अवसर के अनुसरण से आप इस ग्रन्थ की भाषा को स्थान स्थान पर परिवर्तित पावेंगे। मैंने ऊपर कहा है कि जिस पद्य में मुझको जिस प्रकार का शब्द रखना उचित जान पड़ा, मैंने उसमें वैसा ही शब्द रखा है, परन्तु नहीं कह सकता कि में अपने उद्देश्य में कहाँ तक कृतकार्य हुआ हूँ, और सहृदय कवि एव विद्वानों को मेरी यह परिपाटी कहाँ तक उचित जान पडेगी। मेरा यह भी विचार हुआ था कि मैं व्रज भाषा की प्रणाली के अनुसार ण, श इत्यादि को न, स इत्यादि से बदल कर इस ग्रंथ की भाषा का विशेष कोमल कर दूं । रमणीय, श्रवण, शोभा, शक्ति इत्यादि को रमनीय, स्त्रवन, सोभा, सक्ति कर के लिखूॅ । परन्तु ऐसा करने से प्रथम तो इस ग्रन्थ की भाषा वर्तमान-काल की गद्य की भाषा से अधिक भिन्न हो जाती, दूसरे इममें जो संस्कृत का यतकिंचिन् रंग