इत्यादि लिखना अच्छा है, क्योकि यह प्रयोग ऐसी सब क्रियाओ में एक सा होता है, किन्तु प्रथम प्रयोग इस प्रकार की अनेक क्रियाओ में एक सा नहीं हो सकता । जैसे जाना धातु का रूप तो जायेंगे, जायगा इत्यादि वन जावेगा, परन्तु आना, पीना इत्यादि धातुओ का रूप इस प्रकार न बन सकेगा, क्योकि आयगा पीयगा, इत्यादि नहीं लिखा जाता। आयेगा या यावेगा, पीयेगा या पीवेगा इत्यादि ही लिखा जाता है।
विशेषण-विभिन्नता
हिन्दी भाषा के गद्य-पद्य दोनों में विशेषण के प्रयोग में विभिन्नता देखी जाती है । सुन्दर स्त्री या सुन्दरी स्त्री, शोभित लता या शोभिता लता, दोनो लिखा जाता है। निम्नलिखित गद्य-पद्य को दखिये——इनमें श्रापको दोनो प्रकार का प्रयोग मिलेगा——
"अभी जो इसने अपने कानो को छूनेवाली चञ्चल चितवन से मुझे देखा"
"जो स्त्रियां ऐसी सुन्दर हैं उन पर पुरुष को आसक्त कराने में कामदेव को अपना धनुष नहीं चढाना पडता"
——कर्पूरमंजरी पृष्ठ १० ११
"निरवलम्बा, शोकमागरमग्ना, अभागिनी अपनी जननी की दुरवस्था एक बार तो आँखें खोल कर देखो"
"तुम लोग अब एक वेर जगतविख्याता, ललनाकुलकमलकलिकाप्रकाशिका, राजनिचयपूजितपादपीठा, सरल्हृदया,आईचित्ता,प्रजारजनकारिणी, दयागीला, आर्यन्यामिनी, राजराजेश्वरी महारानी विक्टोरिया के चरणकमली में अपने दुस को निवेदन करो"
——भारत जननी पृष्ठ ९, ११
“धूनी तो आग की ज्वाला चञ्चल गिग्वा झलफती है"
“कोमल, मृदुल, मिष्टयाणी मे दुख का रेनु परसता है'
“अपनी अमृतमयी वाणी ने प्रेमसुधा वरमाता था'
——एकान्तमानी योगी (प.श्रीधर पाठक)