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समझने की चेष्टा करेगे और मुझको वृथा वाग्बाण का लक्ष्य न बनावेगे।

वर्णन-शैली

रुचि-वैचित्र्य स्वाभाविक है। कोई संक्षेप वर्णन को प्यार करता है कोई विस्तृत वर्णन को । किसी को कालिदास की प्रणाली प्रिय है, किसी को भवभूति की। संक्षेप वर्णन से जो हृदय पर क्षणिक गहरा प्रभाव पडता है कोई उसको आदर देता है, कोई उस विस्तृत वर्णन से मुग्ध होता है, जिसमे कि पूरी तौर पर रस का परिपाक हुआ हो । निदान किसी ग्रन्थ की वर्णन-शैली का प्रभाव किसी मनुष्य पर उसकी रुचि के अनुसार पड़ता है। जो विस्तृत वर्णन को नहीं प्यार करता वह अवश्य किसी ग्रन्थ के विस्तृत वर्णन को पढ कर ऊब जावेगा, इसी प्रकार जिसको किसी रस का संक्षेप वर्णन प्रिय नहीं, वह अवश्य एक ग्रन्थ के संक्षेप वर्णन को पढ़ कर अतृप्त रह जावेगा। और यही कारण है कि प्रतिष्ठित ग्रन्थकारो की समालोचनाये भी नाना रूपो में होती है । मैने अपने ग्रन्थ में वर्णन के विषय में मध्य-पथ ग्रहण किया है, किन्तु इस दशा में भी संभव है कि किसी सज्जन को कोई प्रसंग संक्षेप में वर्णन किया जान पड़े और किसी को कोई कथा भाग अनुचित विस्तार से लिखा गया ज्ञात हो । मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूँगा, यदि ग्रन्थ के सहृदय पाठकगण इस विषय में मुझे समुचित सम्मति देगे, जिसमे कि दूसरी आवृत्ति में मै अपने वर्णनो पर उचित मीमासा कर सकूॅ।

कवितागत कतिपय शब्द

अब मै इस ग्रन्थ की कविता में व्यवहृत किये गये कुछ-शब्दो के विषय में विचार करना चाहता हूँ। सब भाषाओं में गद्य की भाषा से पद्य की भाषा मे कुछ अन्तर होता है, कारण यह है कि