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षोड़श सर्ग

वंशस्थ छन्द
विमुग्ध-कारी मधु मंजु मास था ।
वसुन्धरा थी कमनीयता-मयी ।
विचित्रता-साथ विराजिता रही ।
वसंत वासंतिकता वनान्त में ॥१॥

नवीन भूता वन की विभूति में ।
विनोदिता-वेलि विहंग-वृन्द में ।
अनूपता व्यापित थी वसंत की ।
निकुंज में कूजित-कुंज-पुंज में ॥२॥

प्रफुल्लिता कोमल-पल्लवान्विता ।
मनोज्ञता-मूर्ति नितान्त-रंजिता ।
वनस्थली थी मकरंद-मोदिता ।
अकीलिता कोकिल-काकली-मयी ॥३॥

निसर्ग ने, सौरभ ने, पराग ने ।
प्रदान की थी अति कान्त-भाव से ।
वसुन्धरा को, पिक को, मिलिन्द को ।
मनोज्ञता, मादकता, मदांधता ॥४॥