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प्रियप्रवास

कब पर - दुख कोई है कभी बॉट लेता।
सब परिचय - वाले प्यार ही है दिखाते ।
अहह न इतना भी हो सका तो कहूंगी।
मधुकर यह सारा दोष है श्यामता का ‌‌।।७७॥

द्रुतविलम्बित छन्द
कमल - लोचनं क्या कल आ गये।
पलट क्या कु - कपाल - क्रिया गई।
मुरलिका फिर क्यो वन मे बजी।
बन रसा तरसा बरसा सुधा ॥७८॥

किस तपोबल से किस काल मे।
सच बता मुरली कल - नादिनी।
अवनि मे तुझको इतनी मिली।
मदिरता, मृदुता, मधुमानता ‌‌।।७९।।

चकित है किसको करती नहीं।
अवनि को करती अनुरक्त है।
विलसती तव सुन्दर अंक मे।
सरसता, शुचिता, रुचिकारिता ॥८०॥

निरख व्यापकता प्रतिपत्ति की।
कथन क्यो न करूँ अयि वंशिके।
निहित है तव मोहक पोर में।
सफलता, कलता, अनुकूलता ॥८१॥

मुरलिके , कह क्यों तव - नाद से।
विकल हैं. बनती ब्रज,- गोपिका ।
किस लिये कल पा सकती नहीं।
पुलकती, हॅसती, मृदु बोलती ॥८२॥