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में दूसरी नहीं है । इस भाषा का प्रसिद्ध विद्वान और कवि अली हजी जब हिन्दुस्तान में आया, तो उसको व्रजभाषा के माधुर्य की प्रशसा सुन कर कुछ स्पर्धा हुई । वह ब्रज-प्रान्त में इस कथन की सत्यता की परीक्षा के लिये गया। मार्ग में उसको एक ग्वालिन जल ले जाते हुए मिली, जिसके पीछे पीछे एक छोटी कोमल वालिका यह कहती हुई दोड़ रही थी, ‘मायरे माय गैल सॉकरी पगन मैं कॉकरी गडतु हैं।' इस बालिका का कथन सुनकर वे चक्कर में आ गये और सोचा कि जहाँ की गॅवार बालिकाओं का ऐसा सरस भाषण है, वहाँ के कवियो की वाणी का क्या कहना परन्तु उनके सहधर्मियो ने इसी परम लावण्यवती, कोमला अथच मनोहरा ब्रज-भाषा का क्या समादर किया, उन्होने चुन-चुन कर इसके शब्दों को अपनी कविता में से निकाल बाहर किया और उनके स्थान पर फारसी अरबी के अकोमल और श्रुति-कटु शब्दों को भर दिया।

सबसे पहले मुसलमान कवि जिन्होने हिन्दी-भाषा में कविता करने के लिये लेखनी उठाई, अमीर खुसरो थे। यह कवि तेरहवे शतक में हुआ है। इसकी कविता का रंग देखिये——

खालिकवारी सिरजनहार । वाहिद एक वेदॉ करतार ।
रसूल पयम्बर जान बसीठ । यार दोस्त बोली जा ईट ।।
जेहाल मिस्कों मक्नु तगाफुल । दुराय नैना बनाय वतियाँ ।
किताबें हिजरा न दारम् ऐ जॉ। न लेहु काहे लगाय छतियों ।।

दक्षिण का सादी नामक एक आदिम उर्दू कवि बतलाया जाता है। उसकी कविता का नमूना यह है——

हम तुम्हन को दिल दिया, तुम दिल लिया औ दुख दिया ।
हम यह किया तुम वह किया, ऐसी भली यह पीत है ।।

वली भी उर्दू का आदिम कवि है, उसकी कविता का भी उदाहरण अवलोकन कीजिये——