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प्रियप्रवास

अपूर्व - आस्फालन साथ श्याम ने।
अतीव - लांबी वह यष्टि छीन ली।
पुनः उसीके प्रवल - प्रहार से।
निपात उत्पात - निकेत का किया ।।८४।।

गुणावली है गरिमा विभूपिता।
गरीयसी गौरव - मूर्ति - कीर्ति है।
उसे सदा संयत · भाव साथ गा।
अतीव होती चित - बीच शान्ति है ।।८५।।

वनस्थली मे पुर मध्य ग्राम मे।
अनेक ऐसे थल है सुहावने ।
अपूर्व - लीला व्रज - देव ने जहाँ।
स - मोद की है मन मुग्धकारिणी ।।८६।।

उन्हीं थलो को जनता शनैः शनैः ।
वना रही है ब्रज - सिद्ध पीठ सा।
उन्ही थलो की रज श्याम - मूर्ति के।
वियोग मे है बहु - बोध - दायिनी ।।८७||

अपार होगा उपकार लाडिले ।
यहाँ पधारे यक बार और जो।
प्रफुल्ल होगी व्रज - गोप - मण्डली ।
विलोक आँखो वदनारविन्द को ।।८८।।

मन्दाक्रान्ता छन्द
श्रीदामा जो अति - प्रिय सखा श्यामली मूर्ति का था।
मेधावी जो सकल - ब्रज के बालको मे बड़ा था।
पूरा ज्योही कथन उसका हो गया मुग्ध सा हो।
बोला त्योही मधुर - स्वर से दूसरा एक ग्वाला ।।८९।।