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एकादश सर्ग



मालिनी छन्द
यक दिन छवि - शाली अर्कजा - कूल - वाली ।
नव - तरु - 'चय- शोभी - कुंज के मध्य बैठे ।
कतिपय ब्रज भू के भावुको को विलोक ।
बहु - पुलकित ऊधो भी वहीं जा विराजे ॥१॥

प्रथम सकल - गोपो ने उन्हें भक्ति- द्वारा ।
स - विधि शिर नवाया प्रेम के साथ पूजा ।
भर भर निज - आँखो मे कई बार ऑसू ।
फिर कह मृदु - बाते श्याम - सन्देश. पूछा ॥२॥

परम - सरसता से स्नेह से स्निग्धता से ।
तब जन - सुख - दानी का सु-सम्वाद प्यारा ।
प्रवचन - पटु ऊधो ने सबो को सुनाया ।
कह कह हित बाते शान्ति दे दे प्रबोधा ।।३।।

सुन कर निज - प्यारे का समाचार सारा ।
अतिशय - सुख पाया गोप की, मंडली ने ।
पर प्रिय - सुधि आये प्रेम - प्राबल्य द्वारा ।
कल समय रही सो मौन हो उन्मना सी ॥४॥