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नवम सर्ग

कहीं उठाता बहु - मंजु वीचियाॅ ।
कहीं खिलाता कलिका प्रसून की ।
बड़े अनूठेपन साथ पास जा ।
कही हिलाना कमनीय - कंज था ।।९०।।

अश्वेत दे आरुणाभ बैंगनी ।
हरे अबीरी सित पीत संदली ।
विचित्र - देशी बहु अन्य वर्ण के ।
विहग से थी लसिता वनस्थली ।।९१।।

विभिन्न - आभा रुत रंग रुप के ।
विहंगमो का दल व्योम - पंथ हो ।
स - मोदी आता जब था दिगंत से ।
विशेष होता वन का विनोद था ‌।‌।९२।।

स - मोदी जाते जब एक पेड़ से ।
द्वितीय को तो करते विमुग्ध थे ।
कलोल में हो रत मंजु - बोलते ।
बिहंग नाना रमणीय रंग के ।।९३।।

छटामयी कान्तिमती मनोहरा ।
सु - चन्द्रिका से निज-नील पुच्छ के ।
सदा बनाता वन को मनोज्ञ था ।
कलापियो का कुल केकिनी लिये ।।९४।‌।

कहीं शुको का दल बैठ पेड़ की ।
बली - सु- शाखा पर केलि-मत्त हो ।
अनेक - मीठें- फल खा कदंश को ।
गिर रहा हूं पर था प्रफुल्ल हो ।।९५।।