पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/१८१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०८
प्रियप्रवास

वंशस्थ छन्द

सुकूल - वाली कलि - कालिमापहा ।
विचित्र - लीला - मय वीचि-संकुला ।
विराजमाना बन एक ओर थी ।
कलामयी केलिवती - कलिदजो ॥७२।।

अश्वेत साभा सरिता - प्रवाह में ।
सु - श्वेतता हो मिलिता-प्रदीप्ति की ।
दिखा रही थी मणि नील - कांति में ।
मिली हुई हीरक - ज्योति - पुंज सी ॥७३॥

विलोकनीया नभ नीलिमा समा ।
नवाम्बुदो की कल - कालिमोपमा ।
नवीन तीसी कुसुमोपमेय थी ।
कलिंदजा की कमनीय श्यामता ।।७४।।

न वास किम्बा विष से फणीश के ।
प्रभाव से भूधर के न भूमि के ।
नितांत ही केशव - ध्यान - मग्न हो ।
पतंगजा थी असितांगिनी बनी ।।७५।।

स - बुदबुदा फेन - युता सु - शब्दिता ।
अनंत - आवर्त - मयी प्रफुल्लिता ।
अपूर्वता अंकित सी प्रवाहिता ।
तरंगमालाकुलिता • कलिंदजा ॥७६।।

प्रसूनवाले, फल - भार से नये ।
अनेक थे पादप कूल पै लसे ।
स्वछायया जो करते प्रगाढ़ थे ।
दिनेशजा - अंक - प्रसूत - श्यामता ॥७७॥