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नवम सर्ग

शिखरणी छन्द
अनूठी आभा से सरस - सुषमा से सुरस से ।
वना जो देती थी बहु गुणमयी भू विपिन को ।
निराले फूलो की विविध दलवाली अनुपमा ।
जड़ी बूटी हो हो बहु फलवती थी विलसती ॥६६॥

द्रुतविलम्बित छन्द
सरसतालय सुन्दरता सने ।
मुकुर - मंजुल से तरु - पुंज के ।
विपिन मे सर थे बहु सोहते ।
सलिल से लसते मन मोहते ॥६७॥

लसित थी रस - सिचित वीचियाँ ।
सर समूह मनोरम अंक मे ।
प्रकृति के कर थे लिखते मनो ।
कल - कथा जल केलि कलाप की ॥६८॥

द्युतिमती दिननायक दीप्ति से ।
स द्युति वारि सरोवर का बना ।
अति - अनुत्तम कांति निकेत था ।
कुलिश सो कल - उज्ज्वल - कॉच सा ॥६९।।

परम - स्निग्ध मनोरम - पत्र में ।
सु - विकसे जलजात - समूह से ।
सर अतीव अलंकृत थे हुए ।
लसित थी दल पै कमलासना ॥७०॥

विकच - वारिज - पुंज विलोक के ।
उपजती उर मे यह कल्पना ।
सरस भूत प्रफुल्लित नेत्र से ।
वन - छटो सर हैं अवलोकते ॥७१।।