को विशेष मनोनिवेश-पूर्वक पढ़िये जिनके नीचे लकीर खीची हुई है, और इस बात की मीमांमा कीजिये कि एक दूसरे का रूपान्तर होने पर भी उनमे कौन कान्त है।
अज्स्सजेब पिअबअस्सेन चुण बुट्टेण ।
आर्य्यस्यैव प्रियवयस्येन चूर्ण वृद्धेन ।
आ दासीएपुत्ता चुणबुड्ढा कदाणुक्खु तुम कुविदेणरणा पालयेण
णव बहू केस कलाव बिअ ससुअन्ध कप्पिजन्त पेक्सिस्स ।
आ दास्या पुत्र चूर्ण वृद्ध कदानु। खलु त्वा कुपितेन राजा
पालकेननववधूकेगकलापमिव ससुगन्ध छेद्यमान प्रेक्षिष्ये ।
अम्हारिस जण जोग्गेण बम्हणेण उवनिमन्तितेण ।
अस्मादृश जन योग्येन ब्राह्मणेन उपनिमन्त्रितेन ॥
हादेह अलिल जलेहिं पाणिएहि उजाणेउवत्रण काणणेणिशणे
णालीहिसहजुबदी हिइत्थिआगिन्धब्बोबिअशुदेहिअङ्गकेहि
स्नातोह सलिलजलं पानीय उद्याने उपवन कानने निगण्णे ।
नारीभि सह युवतीभिः स्त्रीभिगन्धर्व इव सुहितैरङ्गकै ।
हत्थशुञ्जदो मुहशादो इन्दियाञ्जदो शेक्खु माणुगे।
कि कलेदि लाअउले तश पललोओ हत्थे णिच्चले ।।
हस्तसयत मुखसयत इन्द्रियसयत सखलु मनुष्य ।
कि करोति राजकुल तस्य परलोको हस्ते निश्चल ॥
——मृच्छकटिक
यदि कहा जावे कि संस्कृत-श्लोको और वाक्यो के चुनने मे जिम सहृदयता से काम लिया गया है,प्राकृत के श्लोको और वाक्यो