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सप्तम सर्ग

मालिनी छन्द
प्रिय - पति वह मेरा प्राणप्यारा कहाँ है ।
दुग्व - जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है ।
अब तक जिसको मै देख के जी सकी हूँ ।
वह हृदय हमारा नेत्र - तारा कहाँ है ॥११॥

पल पल जिसके मै पथ को देखती थी ।
निशि दिन जिसके ही ध्यान मे थी बिताती ।
उर पर जिसके है सोहती मजुमाला ।
वह नवनलिनी से नेत्रवाला कहाँ है ॥१२॥

मुझ विजित - जरा का एक आधार जो है ।
वह परम अनूठा रत्न सर्वस्व मेरा ।
धन मुझ निधनी का लोचनो का उॅजाला ।
सजल जलद की सी कान्तिवाला कहाँ है ।।१३।।

प्रति दिन जिसको मैं अंक में नाथ ले के ।
विधि लिखित कुअको की क्रिया कीलती थी ।
अति प्रिय जिसको है वस्त्र पीला निराला ।
वह किशलय के से अगवाला कहाँ है ।।१४॥

वर वदन विलोके फुल अंभोज ऐसा ।
करतल - गत होता व्योम का चद्रमा था ।
मृदु - रव जिसका है रक्त सूखी नसो का ।
वह मधु - मय - कारी मानसो का कहाँ है ।।१५।।

रस - मय वचनो से नाथ जो गेह मध्य ।
प्रति दिवस बहाता स्वर्ग - मदाकिनी था ।
मम सुकृति बरा का स्रोत जो था सुवा का ।
वह नव - धन न्यारी श्यामता का कहाँ है ॥१६॥