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अँगरेजी में भी भिन्नतुकान्त कविता में लिखित कई उत्तमोत्तम पुस्तकें है।

कहा जाता है, भिन्नतुकान्त कविता सुविधा के साथ की जा सकती है, और उसमे विचार-स्वतंत्रता, सुलभता और अधिक उत्तमता से प्रकट किये जा सकते है। यह बात किसी अंश मे सत्य है, परन्तु मैं यह मानने के लिये तैयार नहीं हूँ कि केवल इसी विचार से अंत्यानुप्रास विभूषित कविता की आवश्यकता नहीं है। यदि अन्त्यानुप्रास आदर की वस्तु न होता, तो वह कदापि संसारव्यापी न होता, उसका इतना समाहत होना ही यह सिद्ध करता कि वह आदरणीय है। इसके अतिरिक्त एक साधारण वाक्य को भी अन्त्यानुप्रास सरस कर देता है। हाँ, भाषा सौकर्य्य साधन के लिये और उसको विविध प्रकार की कविता से विभूषित करने के उद्देश्य से अतुकान्त कविता के भी प्रचलित होने की आवश्यकता है, और मैंने इसी विचार से इस 'प्रियप्रवास' ग्रंथ की रचना, इस प्रकार की कविता में की है।

काव्यवृत्त

मैंने ऊपर निवेदन किया है कि संस्कृत कविता का अधिकांश भिन्नतुकान्त है, इस लिये यह स्पष्ट है कि भिन्नतुकान्त कविता लिखने के लिये संस्कृत-वृत्त बहुत ही उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त भाषा-छन्दो में मैंने जो एक आध अतुकान्त कविता देखी उसको बहत ही भद्दी पाया, यदि कोई कविता अच्छी भी मिली तो उसमे वह लावण्य नहीं मिला, जो सत्कृत-वृत्तो में पाया जाता है, अतएव मैंने इस ग्रंथ को संस्कृत-वृत्तो मे ही लिखा है। यह भी भाषा साहित्य में एक नई बात है। जहाँ तक मै अभिज्ञ हूँ अब तक हिन्दी-भाषा में केवल संस्कृत-छन्दो में कोई ग्रंथ नहीं लिखा गया है। जब से हिन्दी-भाषा में खड़ी बोली की कविता का प्रचार हुआ