१४ प्राचीन पडित और कवि सके तो दिखा दी जाय, और यदि यह भी न कर सके तो गंगाजल में घोलकर पिला दी जाय । सुनने और देखने की शक्ति क्षीण हो जाने से, यह कविता जल से धोकर, किसी तरह उनको पिला दी गई, कविता का कागज़ गगाजल में घोलकर यही जल उनके मुंह में डाल दिया गया । कहा जाता है कि इसके थोड़ी ही देर बाद राब मदन सिंह ने श्रॉसें खोल दी और वे, झम-क्रम से, नीरोग हो गये। जिस मर्दनसिंह के ऊपर सुसदेवजी की इतनी कृपा थी उसका परित्याग मापने एक जरा सी बात पर कर दिया। महात्माओं की सभी बाते विलक्षण होती है । एक दफे आप अमेठी से डोडियासेरा वापस 'श्राये । यहाँ आकर देखते है तो मौरावाँ निवासी निशाकर नामक एक पंडित इनके स्थान में ठहरे हुए है । इनके आते ही राव के श्रादमी इनके ठहराने और सेवा शथपा में लग गये। परंतु एक पडित और इजतदार प्रादमी को, जो भूल से मिश्रजी के स्थान पर ठहरा दिये गये थे, निकाल देना उचित न समझा गया। इसलिए मिश्रजी से प्रार्थना की गई कि श्राप तब तक अपने से भी अच्छे एक अन्य स्थान पर ठहरें। परंतु अपने स्थान पर दूसरे का ठहराया जाना सुखदेव महाराज को सहन न टुया। उन्होंने किसी की विनती और किसी की प्रार्थना न मानी। जो लोग उनकी सांत्वना करने आये थे, उनल'
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प्राचीन पंडित और कवि